
परवेज़ आलम की रिपोर्ट ………..
गिरिडीह: सम्मेद शिखर में जंगल सफारी बनाने के झारखंड सरकार के फैसले से जैन समाज में गहरी नाराज़गी है। सम्मेद शिखर जैन धर्म का एक अत्यंत पवित्र स्थल है, जहां 20 तीर्थंकरों को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। जैन समुदाय का मानना है कि जंगल सफारी जैसी मनोरंजन गतिविधियों से इस पवित्र स्थल की गरिमा और शांति भंग होगी।
जैन समाज ने झारखंड सरकार के इस फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया है। जैन समाज के लोगों का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार पहले ही इस स्थल को पवित्र तीर्थस्थल घोषित कर चुकी हैं, और ऐसे में जंगल सफारी शुरू करना तीर्थस्थल का अपमान होगा।
“पवित्रता से समझौता नामंज़ूर “
जैन धर्म संगठनों का मानना है कि सम्मेद शिखर जैसे पवित्र स्थल पर मौज-मस्ती की कोई भी गतिविधि अनुचित है। जैन समाज ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने जंगल सफारी की योजना को वापस नहीं लिया, तो देशव्यापी आंदोलन होगा । यह भी स्पष्ट किया कि आंदोलन के दौरान जो भी स्थिति बनेगी, उसकी पूरी जिम्मेदारी झारखंड और केंद्र सरकार की होगी।
पर्यटन क्षेत्र को लेकर पहले भी हुआ था विवाद।
यह पहली बार नहीं है जब पारसनाथ क्षेत्र को लेकर विवाद हुआ हो। दो साल पहले इस क्षेत्र को पर्यटन क्षेत्र घोषित करने की कोशिश की गई थी, जिसका भी जैन समाज ने पुरजोर विरोध किया था। समुदाय का कहना है कि पर्यटन क्षेत्र बनने से मांस-मदिरा जैसे अनुचित कार्य शुरू हो सकते हैं, जिससे तीर्थस्थल की पवित्रता नष्ट होगी। हालांकि, सरकार ने इस क्षेत्र को पहले ही मांस-मदिरा निषेध क्षेत्र घोषित कर दिया है।
बताया गया है कि 2018 में झारखंड सरकार ने पारसनाथ पर्वत को जैन समाज का पवित्र तीर्थ स्थल घोषित किया था, जबकि भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने 5 जनवरी 2023 को इसे पुनः पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में मान्यता दी थी।
जैन समाज का संदेश साफ है—सम्मेद शिखर जैसे पवित्र स्थल की गरिमा और शांति बनाए रखना ही उनकी प्राथमिकता है। उनका यह आंदोलन उस विरासत और श्रद्धा को बचाने के लिए है, जो इस तीर्थस्थल के साथ गहराई से जुड़ी हुई है।