
परवेज़ आलम की खास रिपोर्ट………………….
झारखंड की राजनीति में इन दिनों सीता सोरेन की घरवापसी की चर्चाएं जोरों पर हैं। भाजपा नेता और शिबू सोरेन की बड़ी पुत्र वधू सीता सोरेन एक बार फिर अपने पुराने राजनीतिक घराने में लौटने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन इस राह में सबसे बड़ी चुनौती उनके ही परिवार से आ रही है।
राजनीतिक भविष्य को लेकर बढ़ी बेचैनी।
लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद सीता सोरेन की स्थिति डगमगाने लगी है। उन्हें लगने लगा है कि भाजपा में रहकर संथाल परगना में अपनी सियासी पकड़ मजबूत करना मुश्किल है, क्योंकि यहां जेएमएम का जनाधार काफी मजबूत है। यही वजह है कि अब वे वापसी का रास्ता तलाश रही हैं। इस फैसले के पीछे सिर्फ उनकी सियासत ही नहीं, बल्कि अपनी बेटियों का राजनीतिक भविष्य भी एक बड़ी वजह बताया जा रहा है।
हेमंत और कल्पना की सहमति का इंतजार।
हालांकि, जेएमएम में वापसी इतनी आसान नहीं दिख रही। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन इस पर सहमत नहीं दिख रहे हैं। दरअसल, भाजपा में शामिल होते वक्त सीता सोरेन ने हेमंत और कल्पना पर गंभीर आरोप लगाए थे। दिवंगत दुर्गा सोरेन को लेकर दिए गए उनके बयानों ने भी परिवार को झकझोर दिया था। यही कारण है कि हेमंत-कल्पना उन्हें वापस लेने के मूड में नहीं हैं।
शिबू सोरेन चाहते हैं परिवार एक हो।
जेएमएम के संरक्षक और दिग्गज नेता शिबू सोरेन हमेशा से अपने परिवार को एकजुट देखना चाहते हैं। 11 जनवरी को सीता सोरेन जब शिबू सोरेन को जन्मदिन की बधाई देने उनके घर पहुंचीं, तो इस चर्चा को और बल मिल गया कि वो जेएमएम में वापसी की कोशिशों में जुटी हैं।
परिवार के भीतर ही सियासी संघर्ष!
अब सवाल यह उठता है कि क्या हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन पारिवारिक दबाव में झुकेंगे? परिवार के सदस्य और जेएमएम के कुछ नेता हेमंत और कल्पना को मनाने में लगे हैं, ताकि सीता की वापसी की राह आसान हो सके। लेकिन यह इतना आसान भी नहीं होगा, क्योंकि हेमंत और कल्पना को यह डर भी है कि पुराने विवाद कहीं दोबारा ना उठ खड़े हों।
भाजपा से मोहभंग, जेएमएम में फायदा!
भाजपा में रहते हुए सीता सोरेन को दो बड़े चुनावों में हार का सामना करना पड़ा—दुमका लोकसभा और जामताड़ा विधानसभा। इस हार ने उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़ा कर दिया। ऐसे में, जब जेएमएम सत्ता में है, तो पार्टी में वापसी से उन्हें और उनके परिवार को राजनीतिक लाभ मिल सकता है।
अब आगे क्या?
अब सबकी निगाहें हेमंत और कल्पना सोरेन के फैसले पर टिकी हैं। अगर उन्होंने सीता सोरेन की वापसी को मंजूरी दे दी, तो झारखंड की सियासत में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। लेकिन अगर विरोध जारी रहा, तो सीता को एक नए राजनीतिक रास्ते की तलाश करनी होगी।