
गिरिडीह से परवेज़ आलम की रिपोर्ट …….
बात झारखंड की राजनीति में उभरते हुए उस चेहरे की, जिसे हेमंत सोरेन के सबसे भरोसेमंद नेताओं में गिना जाता है—सुदिव्य कुमार सोनू । मंत्री पद की शपथ लेने वाले इस नेता का सफर राजनीति की ऊंचाइयों और संघर्षों का दिलचस्प दस्तावेज़ है।”
गिरिडीह के इस विधायक ने झामुमो के टिकट पर पहली बार 2009 में चुनाव लड़ा। तब छठे स्थान पर रहे। आठ हजार वोट हासिल कर राजनीति में एक छोटे कदम से शुरुआत की। लेकिन यही कदम धीरे-धीरे उस शख्सियत को आकार देने लगे, जिसे आज गिरिडीह की जनता अपने ‘जनप्रतिनिधि’ के रूप में देखती है।
“पर राजनीति में हर कदम आसान नहीं होता। 2014 में मोदी लहर के बीच वे बीजेपी के विधायक निर्भय कुमार शहबादी से हार गए। लेकिन हार का यह घाव उनकी जिजीविषा को और तीखा कर गया।”
2019 का चुनाव आया। कहानी बदल गई। सुदिव्य कुमार सोनू ने वही सीट जीती, जहां से 2014 में हारकर लौटे थे। 15 हजार से ज्यादा वोटों से बीजेपी के उसी प्रत्याशी को हराया। यह जीत सिर्फ जीत नहीं थी। यह उस संघर्ष का नतीजा था, जो राजनीति में धैर्य और मेहनत से लिखा गया।
“गौर करने वाली बात यह है कि सुदिव्य कुमार का ग्राफ हर चुनाव के साथ बढ़ता गया। 2009 में छठा स्थान। 2014 में दूसरे स्थान पर छलांग। और 2019 में विजय। यह सिर्फ आंकड़ों की कहानी नहीं है। यह उस जमीनी राजनीति का सबूत है, जो धीरे-धीरे जनता के दिलों में जगह बनाती है।”
हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री बनने वाले सुदिव्य कुमार सोनू का नाम उनकी मुखरता और सियासी सूझबूझ के लिए भी जाना जाता है। विधानसभा में उनकी आवाज़ झामुमो के लिए एक ताकत मानी जाती है। लेकिन राजनीति में सवाल सिर्फ पद का नहीं होता। सवाल यह है कि यह पद जनता के लिए कितना सार्थक साबित होता है।
“तो क्या गिरिडीह के इस नेता का यह नया कद झारखंड की जनता के सपनों को पूरा करने का जरिया बनेगा? या फिर यह भी सिर्फ सत्ता की सियासत का एक और नाम होगा?”
शपथ लेने के बाद अब नजरें उनके अगले कदमों पर हैं। गिरिडीह की जनता उनके साथ है। लेकिन राजनीति में जनता का विश्वास सबसे बड़ी चुनौती होती है। इस पर खरा उतरना ही असली कसौटी है।
“आप सवाल पूछते रहिए। क्योंकि लोकतंत्र की ताकत सवालों में ही है।”