रिपोर्ट: रांची से …….
झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोमवार को अधिकारियों के साथ बैठक में कहा, “राजस्व संग्रहण का एक्शन प्लान बनाएं।” उन्होंने यह भी समझाया कि विभागों के बीच समन्वय की कमी से राजस्व का पहिया थम जाता है। यह तो सही बात है, लेकिन क्या सचमुच विभागों के बीच तालमेल की कमी ही अकेली समस्या है?
बोर्ड, निगम और एजेंसियां: नया बिजनेस मॉडल?
मुख्यमंत्री ने यह भी सुझाव दिया कि राज्य की एजेंसियों और बोर्ड को “बिजनेस मॉडल” में बदला जाए।
सीएसआर पर नजर: कंपनियों से क्या उम्मीदें?
बैठक में कहा गया कि राज्य में कार्यरत कंपनियों और उद्योगों की सीएसआर (कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) गतिविधियों की मॉनिटरिंग की जाएगी। मुख्यमंत्री ने पूछा कि कंपनियां सीएसआर में कितना खर्च करती हैं और उसका उपयोग कहां होता है, इसकी जानकारी सरकार को क्यों नहीं है?
राजस्व का सच: कौन करेगा खर्च की निगरानी?
राजस्व की बर्बादी रोकने और स्थापना व्यय को नियंत्रित करने की बात हुई। यह अच्छा है कि सरकार को राजस्व प्रबंधन की चिंता है। लेकिन क्या यह चिंता तभी उभरती है जब खजाना खाली होता है?
राज्य में पहले भी राजस्व उगाही के नाम पर आम जनता पर नए कर लगाए गए हैं। सवाल यह है कि इस बार सरकार का एक्शन प्लान जनता की सहूलियत के लिए बनेगा या उन पर नई आर्थिक मार के रूप में सामने आएगा?
दिखेगी समन्वय की तस्वीर?
मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को समन्वय बनाने की सलाह दी। लेकिन सच यह है कि जब तक राजनीति और प्रशासन के बीच तालमेल नहीं होगा, विकास की रफ्तार थमी रहेगी। सवाल सिर्फ समन्वय का नहीं है, बल्कि इरादे का भी है।
राज्य की जनता इस बैठक से निकलने वाले एक्शन प्लान पर नजरें गड़ाए बैठी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि राजस्व बढ़ाने की यह कवायद जनता की भलाई के लिए होगी, या फिर मुनाफे की नई स्क्रिप्ट का हिस्सा।
(झारखंड के राजस्व संकट और उसके समाधान के लिए मुख्यमंत्री की बैठक पर आधारित रिपोर्ट।)