
GIRIDIH : आज हम बात करेंगे एक ऐसी महान विभूति की, जिसने न सिर्फ महिलाओं की शिक्षा की अलख जगाई, बल्कि समाज की कुरीतियों के खिलाफ आवाज भी बुलंद की। जी हां, हम बात कर रहे हैं सावित्रीबाई फुले की, जिनकी जयंती गिरिडीह के अंबेडकर भवन में आस्था दलित महिला संघ के बैनर तले धूमधाम से मनाई गई।
कार्यक्रम की खासियत।
मंच पर मौजूद थीं प्रमुख अतिथि मधु श्रीसन्याल, प्राचार्या आरके महिला कॉलेज; विशिष्ट अतिथि डीडीसी स्मृता कुमारी और पूर्व प्रोफेसर पुष्पा सिन्हा। मंच का संचालन किया प्रमिला मेहरा ने, और वहां मौजूद हर शख्स सावित्रीबाई के योगदान को याद कर गर्व से भर उठा।
मधुश्री सन्याल ने कहा, “जब महिलाओं को पढ़ाई-लिखाई तो दूर, किसी भी अधिकार का हक नहीं था, उस दौर में सावित्रीबाई फुले ने बालिका शिक्षा और महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।” उन्होंने यह भी कहा कि महिलाओं का शिक्षित होना समाज के बदलाव की पहली शर्त है।
पूर्व प्रोफेसर पुष्पा सिन्हा ने बताया कि सावित्रीबाई फुले सिर्फ नारी शिक्षा की प्रेरक नहीं थीं, बल्कि उन्होंने विधवाओं के लिए आश्रम खोलकर समाज की सोच बदलने का काम किया। उनके योगदान से हमें यह सीखने की जरूरत है कि शिक्षा और अधिकार कैसे समाज को नई दिशा दे सकते हैं।
डीडीसी स्मृता कुमारी ने महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा, “आज हमारे पास हर तरह की सुविधाएं हैं, पढ़ने-लिखने का अधिकार है। ऐसे में हमें अपनी बेटियों को शिक्षित करने और समाज को जागरूक करने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए।”
कार्यक्रम में उमड़ा जनसैलाब।
कार्यक्रम में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। चाहे वो अफसाना प्रवीण हों, ज्योति सोरेन, माला देवी, या गीता देवी, सभी ने सावित्रीबाई फुले के योगदान को सराहा।
पुरुषों ने भी इस आयोजन में अपनी सक्रिय भागीदारी दिखाई। सुखदेव दास, सुशील दास, नारायण दास, और अन्य कई ने सावित्रीबाई के संघर्ष को समाज के लिए मार्गदर्शक बताया।
शिक्षा है सबसे बड़ा बदलाव।
इस कार्यक्रम ने हमें यह याद दिलाया कि सावित्रीबाई फुले का सपना आज भी अधूरा है। महिलाओं को शिक्षित करना, समाज को कुरीतियों से मुक्त करना और समान अधिकार देना—यही इस महोत्सव का मुख्य संदेश था।
सावित्रीबाई फुले की जयंती सिर्फ एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि हर दिन हमारे लिए प्रेरणा है। हमें उनसे सीखते हुए अपने समाज को बेहतर बनाने की दिशा में काम करना होगा ।