
परवेज़ आलम.द न्यूज़ पोस्ट4यू.
गिरिडीह : जैन धर्मावलंबियों के लिए आस्था का सबसे बड़ा केंद्र और विश्वविख्यात तीर्थक्षेत्र मधुबन शिखरजी इन दिनों भक्ति, तप और साधना की ध्वनियों से गूंज रहा है। दस दिवसीय दशलक्षण महापर्व का आरंभ यहां श्रद्धा, भक्ति और आध्यात्मिक उल्लास के साथ हुआ। इस महापर्व का पहला दिन उत्तम क्षमा धर्म को समर्पित रहा। सुबह से ही हजारों की संख्या में श्रद्धालु मंदिरों में पहुँचकर भगवान महावीर और पार्श्वनाथ का अभिषेक, पूजा-अर्चना एवं आरती कर धर्ममय वातावरण में लीन रहे।
क्षमा धर्म की आराधना.
संतों और आचार्यों ने सामूहिक प्रवचन देकर श्रद्धालुओं को क्षमा धर्म के महत्व से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि क्षमा केवल एक गुण नहीं बल्कि संपूर्ण जीवन की दिशा है। क्षमा से व्यक्ति क्रोध, अहंकार और वैरभाव से मुक्त होकर शांति और सहिष्णुता के मार्ग पर चलता है। प्रवचन के दौरान यह संदेश दिया गया कि क्षमा का अभ्यास करने से वैचारिक प्रदूषण से मुक्ति मिलती है और आत्मा की शुद्धि होती है।
धार्मिक अनुशासन और तपस्या.
दशलक्षण महापर्व के दौरान श्रद्धालु एकाशना, उपवास, अंबिल, अठ्ठाई और बेयसना जैसे विविध तप करते हैं। बड़ी संख्या में महिलाएं और युवा इस पर्व में तप, ध्यान और स्वाध्याय की साधना में लीन दिखे। जैन समाज इसे आत्मशुद्धि और आत्मअनुशासन की पवित्र यात्रा मानता है। श्रद्धालु मानते हैं कि यह पर्व न केवल जीवन को अहिंसा और संयम की ओर ले जाता है, बल्कि भविष्य के लोक में भी सुख और शांति का आधार बनता है।
हर दिन विशेष गुण की साधना.
इस पर्व को दशलक्षण इसलिए कहा जाता है क्योंकि दस दिनों में दस विशेष गुणों की साधना की जाती है। इनमें क्षमा, मार्दव (अहंकार का त्याग), आर्जव (सरलता), शौच (शुद्धि), सत्य, संयम, तप, त्याग, अकिंचन और ब्रह्मचर्य शामिल हैं। पहले दिन क्षमा धर्म की आराधना को सबसे श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि यह सभी गुणों की आधारशिला है।
विशेष व्यवस्थाएँ और श्रद्धालुओं का संकल्प.
मधुबन शिखरजी में पर्व को लेकर स्थानीय प्रशासन और जैन समाज ने विशेष व्यवस्थाएँ की हैं। धर्मशालाओं और मंदिरों में भक्ति-भावना का अद्भुत माहौल बना हुआ है। देशभर से आए हजारों श्रद्धालुओं ने इस अवसर पर संकल्प लिया कि वे जीवन में क्षमा, संयम और सद्भावना को आत्मसात करेंगे तथा समाज में शांति और एकता का संदेश फैलाएँगे।